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क़सस अल अनबिया: हज़रत यूसुफ़ علیہ السلام - क़िस्त नं. 18 | Joseph - Prophet Yusuf |

क़स्सास उल अनबिया: हज़रत-ए यूसुफ़ عليه سلام - क़िस्त नं. 18 | Joseph - Prophet Yusuf |
क़स्सास उल अनबिया: हज़रत-ए यूसुफ़ عليه سلام - क़िस्त नं. 18
क़स्सास उल अनबिया: हज़रत यूसुफ़ अ़लैहिस्सलाम

शुरू ख़ुदावंद-ए सुब्हान के बा-बरकत नाम से जो दिलों का मालिक है और जो दिलों के राज़ बख़ूबी जानता है-

दुरूद ओ सलाम बर तमाम मुअज़्ज़िज़ क़ारईन ओ ज़ायरीन, अज़ जानिब-ए मरदम-ए निज़ाम-ए आलम आप मुअज़्ज़िज़ीन को मुहब्बतों भरा अस्सलामु अ़लैकुम व ख़ुश आमदीद, मैं आपका मेज़बान ज़ुलक़रनैन मुहम्मद सुलैमान और आप इस वक़्त मेरे साथ मौजूद हैं निज़ाम-ए आलम पर-

बक़ब्ल-ए मुताअला तमाम ज़ायरीन ओ क़ारईन से गुज़ारिश पेश है की आज के इस मज़मून का मुताअला भी मस्ल-ए हमेशा दुरूद-ए इब्रहीम के साथ ही शुरू करें. एक बार दरूद पढ़ लेने से ख़ुदावंद-ए मतआल क़ारी पर 10 मर्तबा अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमाता है-

بسم الله الرحمن الرحيم
  • - اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ،
  • - اللَّهُمَّ بَارِكَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَ ا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ

दुरूद ओ सलाम बर ख़िताम अल अनबिया ओ मुरसलीन हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम व दुरूद ओ सलाम बर नबी-ए ख़ुदावंद-ए सुब्हान जनाब-ए यूसुफ़-ए सिद्दीक़ (अलैहिस्सलातुवस्सलाम):

हज़रत यूसुफ़ अ़लैहिस्सलाम - क़िस्त नं.18

क़िस्त नंबर 17 में हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाइयों का मिस्र आना और हज़रत यूसुफ़ की उनसे मुलाक़ात और बातचीत के वाक़ेआत पाए रौशनी डाली गयी थी और आज क़िस्त नं 18 में हम उनसे आगे के दिलचस्प वाक़ेआत और हालात से आशना होंगे.हज़रत यूसुफ़ की उनके सगे भाई बिन्यामीन से उनकी मुलाक़ात और बातचीत का कुछ हिस्सा अधूरा रह गया था लिहाज़ा उसके आगे से शुरू करते हैं. 

बहरहाल बादशाह-ए मिस्र हज़रत यूसुफ़ कहने लगे की तुमने अपने भाई को भेड़िये से बचाया क्यों नहीं? भाई कहने लगे की हम उससे नाराज़ रहते थे. हज़रत यूसुफ़ भाइयों से कहते हैं. मगर आप लोग तो कहते हैं की अगर मैं उसे देख लेता तो उसका गरवीदा हो जाता तो आप लोग तो उसके भाई थे, आप उसे मोहब्बत क्यों नहीं देते थे. भाई कहते हैं की वो झूठे ख़्वाब बयान कियाँ करता था.

भाइयों से हज़रत यूसुफ़ ने कहा की वो किस तरह के ख़्वाब बयान करता था? भाई कहते हैं की वो अपने ख़्वाब में ख़ुद को बादशाह और हमें अपना ग़ुलाम देखने का ज़िक्र कियाँ करता था. हज़रत यूसुफ़ भाइयों से फ़रमाने लगे की क्या फिर वो बादशाह बन गया था? भाई कहने लगे नहीं वो बादशाह तो नहीं बना मगर वो मर चुका और अब जन्नत में है, चूंकि वो नाबालिग़ ही मर गया था.

हज़रत यूसुफ़ ने अपने भाइयों से फ़रमाया की मैं भी मुसलमान हूँ और मैं भी दीन-ए हज़रत इब्राहीम पर हूँ बस हममें इतना फ़र्क़ है की मैं क़िब्ती हूँ और आप इबरानी हैं और आप नबीज़ादे भी हैं. बहरहाल हज़रत यूसुफ़ ने अपने भाइयों को अनाज फ़राहम किया और कहा की मैं इस बार आपको अनाज कम दूंगा क्योंकि आप 12 भाई थे. जिनमें से आपका एक भाई मर गया और दूसरे को आप अपने हमराह नही लाये हैं,

मगर जब अगली बार आपका आना हो तो अपने उस छोटे भाई को भी सफ़र में हमराह ज़रूर लाना, ताकि आपको अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ गनदुम फ़राहम की जाए. भाई कहते हैं की हमारे बाबा उसे हमारे हमराह भेजने पर राज़ी नहीं होंगे. हज़रत यूसुफ़ ने कहा की अगर ना भेजे तो आप दोबारा मिस्र ना आना.

बहरहाल फिर बनी इसराईल मुल्के शाम के लिए मिस्र से रवाना हो गए और रास्ते में जहां जहां क़याम करने के लिए रुके, लोगों ने इनकी बड़ी इज़्ज़त की. रास्ते में इब्लीस अपने कुछ चेलों को लेकर आया, ताकि भाइयों को बता दे की मिस्र का बादशाह ही तुम्हारा भाई यूसुफ़ है मगर अल्लाह ने फ़रिश्ते भेजे जिन्होंने शयातीन को मारकर वहाँ से भगा दिया. भाइयों ने ये तमाम मनाज़िर देख लिए होते हैं, वो फ़रिश्तों से पूछते हैं की ये कौन लोग थे? फ़रिश्ते कहते हैं की ये शयातीन थे.

भाई कहते हैं की तुम कौन हो? फ़रिश्ते कहते हैं की हम फ़रिश्ते हैं. बहरहाल तमाम भाई मुल्के शाम लौट आये. हज़रत याक़ूब ने अपने बेटों से कहा, मुझे तुमसे बड़ी अच्छी ख़ुशबू आ रही है और शैतान की सी बदबू भी आ रही है. भाइयों ने वो वाक़ेआ बयान कर दिया की शैतान आया था मगर उसे फ़रिश्तों ने भगा दिया. हज़रत याक़ूब कहते हैं की शायद वो ख़ुशबू फ़रिश्तों की है और बदबू शैतान की है.

बहरहाल हज़रत याक़ूब अपने बेटों से पूछते हैं की सफ़र कैसा रहा? मिस्र में क्या हुआ तुम्हारे साथ? बेटे कहते हैं की बाबा मिस्र के बादशाह ने आपके लिए सलाम भेजा है और आपसे मिलने का बड़ा मुश्ताक़ है. बादशाह ने हमसे आपको अपने हमराह लाने का कहा मगर हमने बादशाह से कहा की हमारे वालिद ज़ईफ़ और कमज़ोर हैं, उनमें सफ़र की ताक़त नहीं और जब हमने उसके सामने यूसुफ़ का तज़किरा किया तो बादशाह बहुत रोया.

वो आपसे मिलने का ख़्वाहां हैं और हमसे कहा की जब अगली बार आओ तो अपने छोटे भाई बिनयामीन को भी अपने हमराह लाना लिहाज़ा उसने हमें ज़रुरत के मुताबिक़ गनदुम नहीं दी. हज़रत याक़ूब ने फ़रमाया की हरगिज़ नहीं, मैं अपने को यूसुफ़ के बाद बिनयामीन को नहीं खोना चाहता. मैं इसे लम्हे भर के लिए भी ख़ुद से दूर नहीं करूंगा. बहरहाल जब गंदुम की बोरियां खोली गयी तो उसमें वो रकम मौजूद थी, 

जिसके एवज़ उन्होंने हज़रत यूसुफ़ से गंदुम ख़रीदी थी. ये मंज़र देखकर बेटों ने हज़रत याक़ूब से कहा की बाबा, ख़ुदारा बिनयामीन को हमारे हमराह जाने दें, शायद बिनयामीन का हमारे साथ चलना मुफ़ीद साबित हो. हज़रत याक़ूब फिर मना कर देते हैं की मैं किसी सूरत यूसुफ़ के बाद बिनयामीन को तुम्हारे हवाले नहीं करूंगा. यहूदा कहने लगा की बाबा, अगर आपने बिनयामीन को हमारे हमराह मिस्र ना भेजा 

तो बादशाह हमें गंदुम हरगिज़ नहीं देगा. उसने वाज़ेह तौर पर हमसे ये बात कह दी थी. हज़रत याक़ूब ने कहा की हल्फ़ उठाओ की तुम बिनयामीन के साथ दग़ाबाज़ी नहीं करोगे और इसे वापस लिए बग़ैर हरगिज़ मेरे पास नहीं आओगे. बिलआख़िर हज़रत याक़ूब को किसी तरह करके बेटे राज़ी कर लेते हैं और आप अलैहिस्सलाम अपने बेटों से कहते हैं की तुम 11 भाई हो एक साथ एक ही दरवाज़े से दाख़िल ना होना वरना तुम्हें लोगों की बद्नज़र लग जायगी और ऐसी सूरत में तुम में से फिर कोई एक ग़ायब हो जायगा. 

बहरहाल हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की रज़ामंदी पर बनी इसराईल ने बिनयामीन को अपने हमराह लिया और मिस्र के लिए रवाना हुए. उस दौर में मिस्र का दारुल हुकूमत शहर थीब्स था, जहां से सारी हुकूमत का निज़ाम हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम सम्भालां करते थे और शहर-ए थीब्स के 4 दाख़िली दरवाज़े थे. तमाम 10 भाई एक ही दरवाज़े से शहर-ए थीब्स में दाख़िल हो गए,

मगर, चूंकि बिनयामीन तनहा थे और पहली बार मिस्र में आये थे लिहाज़ा वो क़स्र-ए यूसुफ़ का रास्ता नहीं जानते थे और वहीँ खड़े रहे. हज़रत यूसुफ़ के पास हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम आये और उनसे कहा की ऐ यूसुफ़! जाएँ आपका सगा भाई बिनयामीन शहर के दाख़िली दरवाज़े पर तनहा खड़ा है. हज़रत यूसुफ़ ने किसी आम शख़्स का लिबास पहना और नक़ाबपोश होकर अपने सगे भाई बिनयामीन के पास तशरीफ़ ले गए.

हज़रत यूसुफ़ ने ख़ुद की बिनयामीन के सामने ज़ाहिर नहीं किया और क़रीब जाकर सलाम किया. आप अलैहिस्सलाम ने इबरानी ज़बान में अपने भाई बिनयामीन से पूछा "यहू शलीसर व अनाबील" जिसका माना उर्दू ज़बान में है की तुम कहाँ से आये हो? बिनयामीन ने जवाब दिया "मीर क़वार व हुशतर" यानी हम मुल्क-ए शाम से आये हैं. बिनयामीन को बड़ी ख़ुशी हुई की मिस्र के लोगों में ये कौन एक शख़्स है,

जो मुझसे इबरानी ज़बान में बात कर रहा है और इबरानी ज़बान बख़ूबी जनता है? हज़रत यूसुफ़ अपने भाई बिनयामीन से पूछते हैं की कहाँ जाना चाह रहे हो? और मिस्र क्यों आये हो? बिनयामीन जवाब देते हैं की अनाज फ़रोख़्त करने के लिए मैं मिस्र आया हूँ और यहां के बादशाह से मिलना चाहता हूँ. हज़रत यूसुफ़ ने बिनयामीन से कहा की चलो, मैं तुम्हें बादशाह के पास ले चलता हूँ. 

मुझे क़स्र-ए अज़ीज़-ए मिस्र का रास्ता माअलूम है. राह ही में चलते- चलते हज़रत यूसुफ़ ने अपने हाथ में पहना याक़ूत का कड़ा उतारा और उसे अपने भाई बिनयामीन को पहना दिया. राह ही में दूर से हज़रत यूसुफ़ ने कहा की देखो तुम्हारे भाई वहां खड़े हैं, जाओ, उनके पास चले जाओ. बिनयामीन ने हज़रत यूसुफ़ से कहा, ऐ इबरानी! मेरे दिल में अपने भाइयों से ज़्यादा तुम्हारे लिए मोहब्बत पैदा हो गयी. 

मुझे ऐसा लगता है की कहीं ना कहीं मुझसे तुम्हारा कोई ताल्लुक़ है. मुझे हकीकत बताओ, कौन हो तुम? मैं अपने भाइयों के पास नहीं जा रहा. हज़रत यूसुफ़ अपने भाई बिनयामीन से कहते हैं की मैंने एक बार मुल्के शाम का सफ़र किया था और मैं वहाँ कुछ रोज़ के लिए ठहरा था लिहाज़ा तब से मुझे इबरानी ज़बान का इल्म हो गया है. बिनयामीन फ़रमाने लगे की ऐ अजनबी! तुमसे कुछ ही लम्हों में एक दिली ताल्लुक़ पैदा हो गया है. 

ये बात सुनकर हज़रत यूसुफ़ रोने लगते हैं. और रोते-रोते अपने भाई बिनयामीन से फ़रमा देते हैं की ऐ! बिनयामीन, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूँ. आप अलैहिस्सलाम अपने भाई से लिपट कर रोने लगे और रोते-रोते बेहोश हो गए और जब होश आया तो अपने भाई से कहा की ऐ बिन्यामीन! इसका तज़किरा किसी से ना करना. बिनयामीन कहने लगे की अब मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा.

आप अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं की ठीक है, मैं तुम्हें यहीं अपने पास रख लूँगा. बहरहाल बिनयामीन अपने दीगर भाइयों के पास जाते हैं. भाई कहते हैं की क्या हुआ, बिनयामीन?, आज तुम इतने ख़ुश क्यों हों? आज तक हमने तुम्हें कभी इतना ख़ुश नहीं देखा. बिनयामीन कहते हैं की आज मुझे कोई इबरानी मिल गया, उससे कुछ बातें हुईं लिहाज़ा मैं ख़ुश हूँ. मुझे बहुत अच्छा लगा उस इबरानी से मिलकर.

भाई कहते हैं की मिस्र में इबरानी कहाँ से आ गया? बिनयामीन कहते हैं की अब तो वो चला गया. मुझे मालूम नहीं कहाँ गया होगा. बहरहाल अब तमाम 11 भाई क़स्र-ए यूसुफ़ में हाज़िर हुए. 

फ़िल-वक़्त आज की माअ़लूमात का हम यहीं इख़्तेताम करते हैं. सिलसिला-ए क़स्सास उल अ़नबिया में हज़रत-ए यूसुफ़-ए सिद्दीक़ अलैहिस्सलातु वस्सलाम के हालात-ए ज़िन्दगी पर मुस्तमिल अगली 19th क़िस्त जल्द अज़ जानिब- ए मरदम-ए निज़ाम-ए आलम शाया कर दी जायगी - इंशा अल्लाह. 

मज़ीद इसी तरह की तारीख़ी और इस्लामी माअलूमात के हुसूल की ग़र्ज़ से निज़ाम-ए आलम के साथ अपनी वाबस्तगी जारी रखें और बर-ऐ निज़ाम-ए आलम अपनी मोहब्बत ज़ाहिर करते हुए इस मज़मून की ज़्यादा से ज़्यादा इश्तराक गुज़ारी करें. 

शुक्रिया-  

✍️- Jalal Ibn Taymous
Translator & Publisher - Zulqarnayn Sulayman

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